बिहार में नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव से पहले ही चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। हाल ही में जारी की गई अपडेटेड मतदाता सूची का ड्राफ़्ट खामियों से भरा हुआ है, जो आयोग की लापरवाही और जल्दबाज़ी को उजागर करता है।
एक महीने तक चले वोटर रिवीज़न के बाद जारी इस सूची में ग़लत तस्वीरें, मृत व्यक्तियों के नाम और पुराने आंकड़े शामिल हैं। यह चौंकाने वाली गड़बड़ियां चुनाव की निष्पक्षता पर सीधा सवाल खड़ा करती हैं।
विपक्षी दलों और चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखने वाले संगठनों का आरोप है कि आयोग ने सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाने के लिए इस काम को हड़बड़ी में निपटाया है। उनका कहना है कि मतदाता सूची की इस हालत से साफ है कि या तो डेटा की जांच नहीं की गई, या फिर जानबूझकर गड़बड़ी को नजरअंदाज किया गया।
कई मतदाताओं ने भी बीबीसी को बताया कि उनकी पहचान गलत तरीके से दर्ज हुई है, और कुछ के नाम बिना किसी कारण हटा दिए गए हैं। ऐसे में यह डर साफ है कि चुनाव से पहले मतदाताओं के अधिकार छीनने की साजिश रची जा रही है।
अगर यह खामियां समय रहते नहीं सुधारी गईं, तो बिहार का चुनावी माहौल पारदर्शिता से कोसों दूर और लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए कलंक साबित हो सकता है।
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