युद्ध एक ऐसी विडंबना है जहां इंसानी नुकसान उसका सबसे आम नतीजा है लेकिन युद्ध के भी नियम और मानवीय पहलू होते हैं जिनमें महिलाओं बच्चों, खाने पीने, अस्पताल, स्कूल, अनाथालयों पर हमले की गुंजाइश नहीं रहती है। लेकिन गाजा पर इजरायली सेना के हमलों ने युद्ध के सभी मानवीय पहलुओं को लहूलुहान कर दिया है।
इजरायल गाजा युद्ध युद्ध के विरूद्ध एक जनसंहार है जिसमें मानवता आए दिनों हार रही है। कोई भी
युद्ध एक विध्वंस होता है, मानवता पर कलंक होता है। लेकिन इजरायल एक त्रासदी कर रहा है और छोटे छोटे बच्चों का हत्यारा है और न जाने कितने
प्राणों का अभी प्यासा है। इजरायल की गाजा पर सैन्य कारवाई ने इंसानियत को छीला है।
इजरायल का गाजा पर सैन्य अभियान
मानवीय विनाश और पीड़ा की एक दर्द भरी कहानी है। जिससे अकल्पनीय पीड़ा और नुकसान हुआ है।
वहां आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता के कारण खाद्य संकट और बड़े पैमाने पर आर्थिक पतन हो रहा है, जैसा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देखा गया था।
गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 24 जुलाई 2025 तक 59,866 फिलिस्तीनी गाजा युद्ध में मारे गए हैं, साथ ही 217 पत्रकार और मीडियाकर्मी ,120 शिक्षाविद और 224 से अधिक मानवीय सहायता कार्यकर्ता, एक संख्या जिसमें यूएनआरडब्ल्यूए के 179 कर्मचारी शामिल हैं ।
विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि मारे गए 80% फिलिस्तीनी नागरिक हैं। ओएचसीएचआर द्वारा किए गए एक अध्ययन , जिसने तीन स्वतंत्र स्रोतों से मौतों की पुष्टि की, ने पाया कि आवासीय भवनों या इसी तरह के आवास में मारे गए 70% फिलिस्तीनी महिलाएं और बच्चे थे। अधिकांश हताहत गाजा पट्टी में हुए हैं । गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय (जीएचएम) की कुल हताहतों की संख्या युद्ध के कारण सीधे हुई मौतों की संख्या है। जनसांख्यिकीय विखंडन व्यक्तिगत रूप से पहचाने गए लोगों का एक उपसमूह है।
17 सितंबर 2024 को, जीएचएम ने 34,344 व्यक्तिगत फिलिस्तीनियों के नाम, लिंग और जन्मतिथि प्रकाशित की जिनकी पहचान की पुष्टि की गई और सभी हताहतों की पहचान करने का प्रयास जारी है। जीएचएम गणना में उन लोगों को शामिल नहीं किया गया है जो "रोकथाम योग्य बीमारी, कुपोषण और युद्ध के अन्य परिणामों" से मर गए हैं। गाजा स्वास्थ्य अनुमान कार्य समूह द्वारा किए गए विश्लेषण ने बीमारी और जन्म संबंधी जटिलताओं से हजारों अतिरिक्त मौतों की भविष्यवाणी की।
पीसीपीएसआर द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि युद्ध शुरू होने के बाद से 60% से अधिक गाजावासियों ने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया है। नष्ट इमारतों के मलबे के नीचे हजारों और शवों के होने का अनुमान है। घायलों की संख्या 100,000 से अधिक है; गाजा में दुनिया में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक अंग-विच्छेदित बच्चे हैं।
गाजा में इजरायली हमलों ने न केवल सैन्य अभियान तेज किए हैं, बल्कि दवाओं, खान पान और ईंधन जैसी आवश्यक आपूर्तियों को भी जानबूझकर बाधित किया है। इस क्रूर रणनीति ने गाजा में रहने वाले लोगों को भूख, बीमारी और अभाव के कगार पर लाकर खड़ा किया है। गाजा इजरायल एक युद्ध नहीं बल्कि एक ताकतवर मुल्क का एक गरीब देश पर खुला दमन है।
आज सबसे हैरानी भरी बात ये है कि भारत जैसा लोकतांत्रिक मुल्क की बीजेपी सरकार गाजा के लोगों की भावनाओं की घोर अनदेखी कर रही है। न कोई मदद न इजरायल के अत्याचारों का विरोध, समझ नहीं आता प्रधानमंत्री मासूमों की हत्या कैसे देख पा रहे हैं।
भारत की विशेषता रही है कि जब जब विश्व में किसी भी मुल्क में अत्याचार हुआ है तो भारत सरकार हमेशा पीड़ित पक्ष के साथ खड़ी हुई है लेकिन मौजूदा मोदी सरकार एक अपवाद है। किसी भी रूप में भारत सरकार की चुप्पी को सही तो ठहराया ही नहीं जा सकता बल्कि इतिहास में एक कलंक के रूप में याद किया जाएगा।
अमेरिका जो इजरायल का सबसे करीबी दोस्त है वो भी इशारों इशारों में गाजा के भूखे बच्चों को देख कर अपनी नाराज़गी जाहिर कर चुका है तो वहीं खुद इजरायल के कई एनजीओ इजरायल की मुखालफत कर चुके हैं लेकिन मोदी सरकार की चुप्पी मानवीय मूल्यों की धज्जियां उड़ा रही है। हालांकि लोकतंत्र का सबसे बड़ा शुभचिंतक बनने का दावा करने वाला अमेरिका भी मानवीय मूल्यों के लिए गाजा में कुछ ख़ास नहीं कर पाया। हालांकि विश्व भर में स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, गली, सड़क, संसदों में विरोध प्रदर्शन खूब हुए। आज ताकतवर मुल्क भले ही चुप रहें लेकिन भविष्य में जब इतिहास लिखा जाएगा तो इस त्रासदी को हमेशा इनकी चुप्पी के लिए शर्मनाक तौर पर याद किया जाएगा।
भारत सरकार को संसद में गाजा के समर्थन में और इजरायल के विरोध में प्रस्ताव लाकर मानवीय मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। इससे न केवल भारत का पक्ष विश्व स्तर पर मजबूत होगा बल्कि न्याय , अहिंसा और मानवता का हमारा संदेश मजबूत होगा।
(लेखक नूंह से कांग्रेस विधायक चौधरी आफताब अहमद हैं)
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